अधिगम के नियम/सीखने के नियम (Law of Learning)
- अधिगम/सीखने के नियम एडवर्ड थार्नडाइक (Thorndike) ने दिए।
- थार्नडाइक के अनुसार उद्दीपक (Stimulus) और अनुक्रिया (Response) के बीच जितना अधिक अनुबंध (Bonding) होता है, अधिगम उतना ही प्रभावशाली होता है।
उद्दीपक (Stimulus):- जिसे हम प्राप्त करना चाहते हैं।
अनुक्रिया (Response):- उद्दीपक की प्राप्ति के लिए क्या गया प्रयास।
अनुबंध (Bonding):- उद्दीपक और अनुक्रिया के बीच बनने वाला बंधन।
(1). अधिगम/सीखने के प्राथमिक/मुख्य नियम (Primary Laws of Learning):-
(i) तत्परता का नियम (Law of Readiness):–
- इसे तैयारी का नियम, रुचि का नियम, प्रेरणा का नियम भी कहते हैं।
- जब हम किसी कार्य को सीखने के लिए तैयार या तत्पर होते हैं, तो हम उसे शीघ्र ही सीख लेते हैं।
जैस- यदि बच्चे में गणित के प्रश्न हल करने की इच्छा है, तो तत्परता के कारण वह उनको अधिक शीघ्रता और कुशलता से करता है। काम करने में आनंद एवं संतोष का अनुभव करेगा।
(ii) अभ्यास का नियम (Law of Exercise):-
- यदि हम किसी कार्य का अभ्यास करते हैं तो हम उसे सरलतापूर्वक करना सीख जाते हैं और उसमें कुशल हो जाते हैं।
अभ्यास (↥)→अनुबंध (↥)→अधिगम (↥)
अभ्यास (↧)→अनुबंध (↧)→अधिगम (↧)
- यदि हम किसी सीखे हुए कार्य का अभ्यास नहीं करते हैं, तो उसे हम भूल जाते हैं। अभ्यास से सीखना स्थायी होता है इसे थार्नडाइक ने उपयोग का नियम (Law of use) और बिना अभ्यास से ज्ञान विस्मृत हो जाता है, इसे अनुपयोग का नियम (Law of Disuse) कहा है।
(iii) प्रभाव का नियम (Low of Effect):-
- इसे परिणाम का नियम, संतोष/असंतोष का नियम भी कहा जाता है।
- प्रायः हम उस कार्य को ज्यादा अच्छे से करना चाहते है जिसका परिणाम हमारे लिए अच्छा और लाभदायक होता है, जिससे हमें सुख एवं सन्तोष मिलता है।
- यदि हमें किसी कार्य को करने या सीखने में कष्ट होता है तो हम उस क्रिया को नहीं दोहराते हैं।
- थार्नडाइक के अनुसार जिस कार्य से सन्तोष होता है उससे उद्दीपन अनुक्रिया सम्बन्ध दृढ़ होता है और जिस कार्य से असन्तोष होता है उससे यह सम्बन्ध कमजोर होता है।
संतोष (↥)→अनुबंध (↥)→अधिगम (↥)
असंतोष (↥)→अनुबंध (↧)→अधिगम (↧)
(2) सीखने के गौण/सहायक/द्वितीयक नियम (Secondary Laws of Learning):-
- थार्नडाइक ने सीखने के पाँच गौण नियमों का प्रतिपादन किया है।
(i) मनोवृत्ति का नियम(Law of Disposition):-
- इसे मानसिक विन्यास या स्थिति का नियम भी कहते हैं।
- जिस कार्य के प्रति हमारी मनोवृत्ति (Attitude) रहती है, उसी अनुपात में हम उसको सीखते हैं।
- अनुकूल मनोवृत्ति होने पर बालक शीघ्र सीखता है तथा प्रतिकूल मनोवृत्ति होने पर बालक के सीखने में बाधाएँ आती है।
सकारात्मक मनोवृत्ति (↥)→अनुबंध (↥)→अधिगम (↥)
नकारात्मक मनोवृत्ति (↥)→अनुबंध (↧)→अधिगम (↧)
(ii) बहु-अनुक्रिया का नियम (Law of Multiple Response):-
- जब हम कोई नया कार्य सीखते हैं, तब हम उसके प्रति विभिन्न प्रकार की अनुक्रियाएँ करते हैं, इनमें से कुछ अनुक्रियाएँ लक्ष्य प्राप्ति में सहायक नहीं होती हैं, उन्हें हम छोड़ देते हैं, और फिर भूल जाते हैं।
- हम उन्हीं अनुक्रियाओं का चयन करते हैं, जो लक्ष्य प्राप्ति में सहायक होती है, इसे ही सीखना कहते हैं।
(iii) आंशिक क्रिया का नियम (Law of Partial Activity):-
- यदि बच्चों के सामने किसी समस्या को छोटे-छोटे भागों में विभाजित कर प्रस्तुत किया जाए और एक-एक भाग का समाधान किया जाए तो बच्चे पूरी समस्या को शीघ्रता एवं सुगमता से समझकर सम्पूर्ण कार्य को पूरा कर सकते हैं।
(iv) अनुरूपता का नियम (Law of Analogy):-
- जब व्यक्ति के सामने कोई नई समस्या आती है तो वह अपने पूर्व के अनुभवों एवं प्रयत्नों को स्मरण करता है और उनसे तुलना करता है कि उसके अनुसार क्रिया कर समस्या का समाधान खोजने का प्रयत्न करता है।
(v) सम्बन्धित परिवर्तन का नियम (Law of Associative shifting):-
- इस नियम को साहचर्य परिवर्तन का नियम भी कहते हैं।
- कोई भी अनुक्रिया जिसे करने की क्षमता व्यक्ति में होती है, उसे एक नए उद्दीपन के द्वारा भी उत्पन्न की जा सकती है। इसमें क्रिया का स्वरूप वहीं रहता है पर परिस्थिति में परिवर्तन हो जाता है।
भारत में टाइगर रिजर्व की सूची PDF डाउनलोड करें। (List of Tiger Reserves in India |PDF Download|) |
इन्हें भी पढ़ें:-